अलंकार : Alankar – अलंकार किसे कहते है, भेद, प्रकार और उदाहरण Alankar in Hindi

अलंकार : परिभाषा, भेद और उदाहरण | Alankar in Hindi – इस आर्टिकल में हम अलंकार ( Alankar), अलंकार किसे कहते कहते हैं, अलंकार की परिभाषा, अलंकार के भेद/प्रकार और उनके प्रकारों को उदाहरण के माध्यम से पढ़ेंगे।इस टॉपिक से सभी परीक्षाओं में प्रश्न पूछे जाते है।  हम यहां पर अलंकार ( Alankar) के सभी भेदों/प्रकार के बारे में सम्पूर्ण जानकारी लेके आए है। Hindi में अलंकार ( Alankar) से संबंधित बहुत सारे प्रश्न प्रतियोगी परीक्षाओं और राज्य एवं केंद्र स्तरीय बोर्ड की सभी परीक्षाओं में यहां से questions पूछे जाते है। अलंकार इन हिंदी के बारे में उदाहरणों सहित इस पोस्ट में सम्पूर्ण जानकारी दी गई है।  तो चलिए शुरू करते है –

Table of Contents

Alankar in Hindi

Alankar in hindi – काव्य की शोभा बढ़ाने वाले शब्दों को अलंकार कहा जाता है। अलंकार दो शब्दों से मिलकर बना होता है – अलम् + कार । यहाँ पर अलम का अर्थ होता है ‘ आभूषण है’ क्योंकि मानव समाज बहुत ही सौन्दर्योपासक है उसकी प्रवर्ती  बढ़ाने के लिए अलंकारों को जन्म दिया गया है । जिस तरह से एक स्त्री अपनी सुन्दरता को बढ़ाने के लिए शरीर पर आभूषण ग्रहण करती हैं उसी प्रकार भाषा की शोभा बढ़ाने के लिए अलंकारों का प्रयोग किया जाता है।

अलंकार किसे कहते हैं | Alankar Kise kahate Hain

अलंकार का अर्थ- आभूषण
‘ अलंकार शब्द की रचना ’ अलम् + कार के योग से हुई है।
अलम् का अर्थ होता है – ‘ शोभा ’
कार का अर्थ होता है – ‘ बढ़ाने वाला ’

जिस प्रकार एक नारी अपनी शोभा को बढ़ाने के लिए आभूषणों को प्रयोग में लाती है, उसी प्रकार भाषा की शोभा बढ़ाने के लिए अलंकारों का प्रयोग किया जाता है।
अर्थात् जो शब्द काव्य की शोभा को बढ़ते हैं उसे अलंकार कहते हैं।

आचार्य दण्डी के अनुसार:- काव्य शोभाकरान् धर्मों अलंकारान् पृच्क्षयतः।

अलंकार की परिभाषा | Alankar ki paribhasha

अलंकार की परिभाषा | Alankar ki paribhasha
जो यंत्र काव्य की सुंदरता बढ़ाते हैं, उन्हें अलंकार कहा जाता हैं । जिस प्रकार से नारी अपनी सुंदरता बढ़ाने के लिए आभूषणों  को धारण करती हैं उसी तरह काव्यों की सुंदरता बढ़ाने के लिए अलंकारों का प्रयोग किया जाता है । अर्थात् जो शब्द काव्य की शोभा को बढ़ते हैं उसे अलंकार कहते हैं।

अलंकार के भेद | Alankar Ke Bhed

अलंकार (Alankar)

अलंकार के भेद | Alankar Ke Bhed
1. शब्दालंकार – शब्द पर आश्रित अलंकार
2. अर्थालंकार – अर्थ पर आश्रित अलंकार
3. उभ्यालंकार – शब्द और अर्थ दोनों पर आश्रित अलंकार

Alankar In Hindi

1. शब्दालंकार अलंकार की परिभाषा | shabdalankar ki paribhasha

शब्दालंकार:- जब काव्य में शब्द के अनुसार चमत्कार उत्पन्न होता है तो उसे शब्द अलंकार कहते हैं।

शब्दालंकार दो शब्दों से मिलकर बना होता है – शब्द+ अलंकार, शब्द के दो रुप होते है – ध्वनी और अर्थ, ध्वनि के आधार पर शब्दालंकार की सृष्टी होती है।

जब अलंकार किसी विशेष स्थिति में रहे और उस शब्द की जगह पर कोई और पर्यायवाची शब्द के रख देने से उस शब्द का अस्तित्व न रहे उसे शब्दालंकार कहते है।

शब्द अलंकार के उदाहरण:- अनुप्रास अलंकार, यमक अलंकार, श्लेष अलंकार, वक्रोक्ति अलंकार।

शब्दालंकार के भेद | shabdalankar ke bhed

शब्दालंकार के भेद | shabdalankar ke bhed
1. अनुप्रास अलंकार
2. यमक अलंकार
3. श्लेष अलंकार
4. पुनरुक्ति अलंकार
5. विप्सा अलंकार
6. वक्रोक्ति अलंकार

1. अनुप्रास अलंकार:-

अनुप्रास शब्द ‘ अनु ’ तथा ‘ प्रास ’ शब्दो से मिलकर बना है।

अनु शब्द का अर्थ है – बार-बार तथा ‘ प्रास ’ शब्द का अर्थ है- वर्ण।

काव्य में जब वर्णों की आवृत्ति बार-बार होती है तो उसे अनुप्रास अलंकार कहते हैं।

उदाहरण:-
► “चारु-चंद्र की चंचल किरणें, खेल रही थी जल-थल में”।
यहां च वर्ण की आवृत्ति बार-बार हो रही है।

► ना में कोनो क्रिया –र्म में नहीं योग बैराग में।
इस पंक्ति में  वर्ण की आवृत्ति बार-बार हुई है।

धुर मृदु मंजुल मुमुस्कान।
‘म’ वर्ण की आवर्ती से अनुप्रास अलंकार है।

सुरुचि सुवास अनुरागा।
‘स’वर्ण की आवर्ती से अनुप्रास अलंकार है।

अनुप्रास अलंकार के भेद-
(i) छेका अनुप्रास
(ii) वृत्या अनुप्रास
(iii) श्रुत्या अनुप्रास
(iv) अन्तयानुप्रास
(v) लाटानुप्रास

(i) छेका अनुप्रास अलंकार :- 
जहां एक वर्ण की आवृत्ति एक ही बार होती है,वहां ‘छेका अनुप्रास अलंकार’ होता है।

उदाहरण:-

  1. फूले ले राष्ट्र दिन-रात मेरा।
    ( वर्ण की आवृत्ति)।
  2. कांटेदार कुरूप खड़े हैं।
    ( वर्ण की आवृत्ति)।

(ii) वृत्या अनुप्रास अलंकार :- 
जहां किसी वर्ण की आवृति दो से अधिक बार हो वहां ‘वृत्याअनुप्रास‘ होता है।

उदाहरण:-

1. विरती विवेक विमल विज्ञाना।
(‘व’ वर्ण की आवृत्ति दो से अधिक बार हुई है।)

2. रस सिंगार मंजनु किये,कंजनु भंजनु नैन
अंजनु रंजनु हूँ बिना, खंजनु गंजनु नैन।
(‘अंजनु’ शब्द की आवृत्ति सात बार हुई है।)

(iii) श्रुत्या अनुप्रास :- 
जहां एक ही उच्चारण-स्थान वाले अधिक वर्ण एक साथ अनुकूल प्रयोग हो जो भाषा में लालित्य उत्पन्न करता उसे श्रुत्या अनुप्रास कहते है।

उदाहरण:-

1. तुलसीदास सीद निसि-दिन देख तुम्हारी निठुराई।
(त वर्ण की आवृत्ति)

(iv) अन्तयानुप्रास :- 
छंद के अंत में वर्णों की आवृत्ति जहां होती है वहां अंत्या अनुप्रास होता है।

उदाहरण:-

1. तज प्राणों का मोह आज सब मिलकर आओ,
मातृभूमि के लिए बंधुवर अलख जगाओ
(यहां छंद के अंत मे आओ शब्द की आवृत्ति हुई है।)

(v) लाटानुप्रास :- 
जब कोई शब्द दो या दो से अधिक बार आए और अर्थ प्रत्येक बार एक ही हो परन्तु अन्वय (अर्थ) करने पर प्रत्येक बार अर्थ भिन्न हो तो लटानुप्रास होता है।

उदाहरण –

  1. पूत कपूत तो क्यों धन संचय
    पूत सपूत तो क्यों धन संचय
    (यहाँ पर ‘तो क्यों धन संचय’ शब्द समूह की आवर्ती हो रही है तो इसे लाटानुप्रास कहते हैं।)

2. यमक अलंकार:-

काव्य में जहां कोई शब्द या शब्दांश बार बार आए किंतु प्रत्येक बार अर्थ भिन्न हो वहां यमक अलंकार होता है।

उदाहरण:-

  1. कनक- कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय ,उपाय बोराय ,उखाय बोराय।
    यहां कनक- कनक के अर्थ भिन्न-भिन्न है।
    कनक- सोना
    कनक- धतूरा।

  2. तू मोहन के उरबसी ह्वै उर्वशी समान।
    उरबसी -हृदय में बसी
    उर्वशी- अप्सरा।

  3. बार जीते सर मैंन के ऐसे देखे मैंन
    हरिनी के नैनान ततें हरिनी के थे नैन।
    मैंन- कामदेव
    मैंन- मैं नहीं

    हरिनी- मादा हिरण
    हरिनी- हरि (कृष्ण) को प्रिय

  4. जे तीन बेर खाती थीं, ते वे तिन बेरे खाती हैं।
    तीन बेर-तीन बेर के फल
    तीन बेर-तीन बार (समय)

यमक अलंकार के भेद-
(i) अभंग
(ii) सभंग

(i) अभंग यमक:- अभंग यमक में पूरे शब्दों की आवृत्ति होती है अर्थात शब्दों को बिना थोड़ी ही आवृत्ति देखी जा सकती है।

(ii) सभंग अलंकार – सभंग यमक में कोई शब्द सार्थक और कोई शब्द निरर्थक हो सकता है किंतु स्वर व्यंजन की आवृत्ति सदा ही उसी क्रम में होती है।

3. श्लेष अलंकार:-

जब एक ही शब्द के प्रसंग अनुसार अलग-अलग अर्थ निकले वहां श्लेष अलंकार होता है।

श्लेष का अर्थ होता है चिपकना।

उदाहरण:-

जलने को ही स्नेह बना, उठने को ही वाष्प बना।

उपयुक्त पंक्ति में एक या एक से अधिक शब्द ऐसे हैं जिनके एक से अधिक अर्थ हैं।

जलने– जलाना, दुख उठाना
स्नेह– तेल, प्रेम
वाष्प– आर्द्रता, भाप।

नोट:- श्लेष अलंकार के भी दो भेद होते हैं।
1.सभंग
2.अभंग।

सभंग श्लेष का उदाहरण: वृषभानुजा और हलदर के बीर की जोड़ी कैसी अनूठी है।
उक्त पंक्ति में वृषभानुजा शब्द में सभंग श्लेष है।
वृषभ+अनुजा -बैल की बहन।
वृषभानु + जा- वृषभानु की पुत्री या राधा।

4. पुनरुक्ति अलंकार :-

पुनरुक्ति अलंकार दो शब्दों से मिलकार बना है – पुन:+उक्ति।

जब शब्द की आवर्ती हो, प्रत्येक बार अर्थ अभिन्न हो और अन्वय भी प्रत्येक बार अभिन्न हो वहाँ पर पुनरुक्ति अलंकार होता हैं।

उदाहरण –

  1. घनश्याम-छटा लखिकै सखियाँ!
    आँखियाँ सुख पाइ हैं, पाइ हैं।
    यहाँ पाइ हैं शब्द तीन बार आया हैै और तीनो बार अर्थ वही है और अन्वय भी एक जैसा हैं।(आँखियॉं कर्ता क्रिया है।)

5. विप्सा अलंकार :-

जब क्रोध, शोक, आदर विस्मयादिबोधक आदि भावों को प्रभावशाली रुप से व्यक्त करने के लिए शब्दों का बार-बार प्रयोग किया जाए वहाँ वीप्सा अलंकार होता हैं।

उदाहरण –

  1. सुखी रहें, सब सुखी रहें बस छोड़ो मुझ अपराधी को!
  2. हा! हा!! इन्हे रोकने को टोक न लगावौ तुम।

5. वक्रोक्ति अलंकार :-

जब किसी व्यक्ति के एक अर्थ में कहे गए शब्द या वाक्य का कोई दूसरा व्यक्ति जान बूझकर दूसरा अर्थ कल्पित करें।

उदाहरण –

है पशुपालन कहाँ सजनी!जमुना तट धेनु चराय रहो री!

वक्रोक्ति अलंकार के भेद-
(i) काकु-वक्रोक्ति
(ii) श्लेष वक्रोक्ति

(i) काकु -वक्रोक्ति अलंकार :- कंठ ध्वनि की विशेषता से अन्य अर्थ कल्पित हो जाना ही काकू-वक्रोक्ति अलंकार होता हैं।

उदाहरण –

► आये हो मधुमास के प्रियतम ऐैहैं नाहीं।
आये हू मधुमास के प्रियतम एैहैं नाहिं?

(ii) श्लेष वक्रोक्ति अलंकार :-जहां पर श्लेष की वजह से वक्ता के द्वारा बोले गए शब्दों का अलग अर्थ निकाला जाए वहां श्लेष वक्रोक्ति अलंकार होता है।

उदाहरण –

► एक कबूतर देख हाथ में पूछा,कहां अपर है?
उसने कहा अपर कैसा? वह तो उड़ गया सफर है॥

2. अर्थ अलंकार की परिभाषा | Arthalankar ki paribhasha

अर्थ अलंकार की परिभाषा:- काव्य में जहां अर्थ के अनुसार चमत्कार उत्पन्न हो वहां अर्थ अलंकार होता है।

अर्थालंकार के भेद | Arthalankar ke bhed

1.उपमा अलंकार
2.रूपक अलंकार
3.उत्प्रेक्षा अलंकार
4. अतिशयक्ति अलंकार
5. मानवीकरण अलंकार
6. सन्देह अलंकार
7. दृष्टान्त अलंकार
8. दिपक अलंकार
9. उपमेयोपमा अलंकार
10. प्रतीप अलंकार
11. अनन्वय अलंकार
12. भ्रांतिमान अलंकार
13. विशेषोक्ति अलंकार
14. विभावना अलंकार
15. त्यतिरेक अलंकार
16. अपहृति अलंकार
17. अर्थान्तरन्यास अलंकार
18.उल्लेख अलंकार
19. विरोधाभाष अलंकार
20.असंगति अलंकार
21.काव्यलिंग अलंकार
22. अन्योक्ति अलंकार
23. उदाहरण अलंकार
24. स्वभावोक्ति अलंकार
25.अत्युक्ति अलंकार
26. निदर्शना अलंकार
27. परीसंख्या अलंकार

प्रमुख अर्थ अलंकार :-

1.उपमा अलंकार:-

काव्य में जब दो वस्तुओं के मध्य (उपमेय व उपमान) के कारण समानता दर्शाई जाए वहां उपमा अलंकार होता है।

पहचान:- सा ,सी ,सम ,सदृश्य ,सरिस।

उपमा अलंकार के अंग:- उपमेय, उपमान, वाचक शब्द, समान गुणधर्म।

उदाहरण –

1.”पीपर पात सरिस मन डोला।”
उपमेय – मन
उपमान– पीपर पात

2. मधुकर सरिस संत गुनग्राही
मधुकर एवं संतों में तुलना हो रही है।

3. नारी-मुख चंद्रमा के समान सुंदर है।
नारी मुख की तुलना चंद्रमा से हो रही है।

4. नवल सुन्दर श्याम-शरीर की,
सजल नीरद-सी कल कान्ति थी।
उपमेय – श्याम-शरीर
उपमान – नीरद


उपमा के चार अंग है –

1.उपमेय -वह व्यक्ति या वस्तु कवि जिसका वर्णन करता है। जैसे-मन,सुख,संत,बेकारी,महंगाई।
2.उपमान –कवि जिन वस्तुओं का वर्णन करता है उपमान में की समानता को बताने के लिए करता है। जैसे-मधुकर, अरविंद,पात,चंद्रमा,तीर,चीर।
3.समानता वाचक शब्द – वे शब्द जो परस्पर समानता को व्यक्त करते हैं। जैसे – सरिस,के समान,कैसे,जैसा,सा सी,से।
4.समान धर्म- वह गुण रुप या धर्म जिससे उपमेय और उपमान में समानता दिखाई जाती है। जैसे-बढ़ना,चीरना, डोलना,सुंदर,सोना, निरंतर।

2.रूपक अलंकार –

उपमेय पर अपमान का आरोप या उपमान और उपमेय का अभेद ही ‘रुपक’ है।

इसके लिए तीन बातो का होना आवश्यक है –

(1) उपमेय को उपमान का रूप देना
(2) उपमेय का भी साथ- साथ वर्णन
(3) वाचक पद का लोप

उदाहरण –

1.पायो जी मैंने राम-रतन धन पायो।

2. राम नाम सुंदर कर-तारी।
संसय-बिहँग उड़ावन हारी॥

3. ये रेशमी-जुल्फें,ये शरबती- आखें।
इन्हें देखकर जी रहे है सभी॥

4. एक राम घनश्याम हित चातक तुलसीदास

3.उत्प्रेक्षा अलंकार –

जहाँ उपयेम और उपमान की समानता के कारण उपमेय की संभावना या कल्पना की जाए वहाँ उत्पेक्षा अलंकार होता है
इसके वाचक शब्द है – मानो, मनु, जनु, जानो, ज्यों आदि।

उदाहरण –

1.मुख मानो चन्द्रमा है।

2.बढ़त ताड़ को पेड़ यह चूमन को आकाश

3.चमचमात चंचल नयन,बिच घुँघट पट झीन।
मानहु सुरसरिता विमल, जल बिछुरत जुग मीन॥

4.अति कटु बचन कहति कैकेई।
मानहु लोन जरे पर देई॥

4. अतिशयक्ति अलंकार –

जहां किसी वस्तु या बात का वर्णन इतना बढ़ा चढ़ा कर किया जाये कि लोकसीमा का उल्लंघन सा प्रतीत हो, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है।

अतिशयोक्ति शब्द ही ‘अतिशय’ ‘उक्ति’ से बना है।

जिसका अर्थ ही है – उक्ति को अतिशयता (बढ़ा चढ़ा कर) से प्रस्तुत करना।

उदाहरण –

‘चलो धनुष से वाण,साथ ही शत्रु सैन्य के प्राण चले।’

5. मानवीकरण अलंकार –

जहाँ निर्जीव पर मानव सुलभ गुणों और क्रियाओं का आरोप किया जाता है,वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है।

उदाहरण –

नेत्र निमीलन करती मानो
प्रकृति प्रबुद्ध लगी होने।’
यहाँ आँखें खोलती हुई प्रकृति में मानवीय कियाओं के आरोपण से मानवीकरण अलंकार है।

2.ऊषा उदास आती है।
मुख पीला ले जाती है॥

3.संध्या घन माला की सुंद
ओढ़े रंग-बिरंगी छींट।

6. सन्देह अलंकार –

जब सादृश्य के कारण एक वस्तु में अनेक अन्य वस्तु के होने की सम्भावना दिखायी ठे और निश्चय न हो पाये,तब संदेह अलंकार होता हैं।

टिप्पणी – किधों,कि,या, अथवा आदि ‘अथवा’वाचक शब्द या शब्दों के प्रयोग से संदेह अलंकार को पहचानने में सुविधा होती है।

उदाहरण –

यह काया है या शेष उसी की छाया,
क्षण भरे उनकी कुछ नहीं समझ में आया।
दुबली-पतली उर्मिला को देख कर लक्ष्मण यह निश्चय नहीं कर सके कि यह उर्मिला की काया है या उसका शरीर । यहां सन्देह बना हैं।

7. दृष्टान्त अलंकार –

जब पहले एक बात कहकर फिर उससे मिलती जुलती दूसरी बात पहली बात के उदाहरण के रूप में कही जय इस प्रकार जब दो वाक्यों में बिम्ब-प्रतिबिम्ब-भाव हो तब दृष्टान्त अलंकार होता है।

उदाहरण –

एक म्यान में दो तलवारें कभी नहीं रह सकती हैं,
किसी और पर प्रेम नारियाँ पति का क्या सह सकती हैं?

यहाँ एक म्यान में दो तलवार रखने और एक विल में दो नारियों का प्यार बसाने में बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव है। पूर्वार्द्ध का उपमेय वाक्य से सर्वथा स्वतन्त्र है, फिर भी बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव से दोनों वाक्य परस्पर सम्बद्ध हैं। एक के बिना दूसरा का अर्थ स्पष्ट नहीं होता।

8. दिपक अलंकार –

जब प्रस्तुत (उपमेय) और अप्रस्तुत (उपमान)को एक ही धर्म से अन्वित किया जाय।

उदाहरण –

‘सोहत मुख कल हास सों,
अमल चवन्द्रका चन्द।
‘ यहाँ प्रस्तुत मुख और अप्रस्तुत चन्द्र दोनों को एक ही धर्म ‘सोहत’से अन्वित किया गया हैं।

9. उपमेयोपमा अलंकार –

जब उपमेय और उपमान को परस्पर उपमान और उपमेय बनाने की प्रक्रिया ‘उपमेयोपमा’ कहते हैं।

उदाहरण

‘तो मुख सोहत है ससि-सो,
अरु सोहत है ससि तो मुख जैसो।’
यहाँ ‘मुख'(उपमेय) को पहले ससि (उपमान) जैसा बताया गया, तदोपरांत ‘ससि’ को उपमेय ‘मुख’ जैसा वर्णित किया गया है।

10. प्रतीप अलंकार –

जहाँ पर प्रसिद्ध उपमान को उपमेय तथा उपमेय को उपमान सिद्ध करके उपमेय की उत्कृष्टता वर्णित की जाती है वहां प्रतीप अलंकार होता है।

‘प्रतीप’ का अर्थ होता है ‘उल्टा’ या ‘विपरीत’।

उदाहरण

‘काहे करत गुमान मुख सम मंजु मयंक।’
यहाँ पर भी उपमान चन्द्र को उपमेय और उपमेय मुख को उपमान बनाकर चन्द्रमा की हीनता सूचित की गयी है।

11. अनन्वय अलंकार –

एक ही वस्तु को उपमेय और उपमान दोनों बना देना ‘अनन्वय’ अलंकार कहलाता हैं।

उदाहरण

अब यद्यपि दुर्लभ आरत है।
पर भारत के सम भारत है।
यहाँ भारत उपमेय है और उपमान भी वही है, अर्थात भारत देश इतना महान है कि इसकी तुलना में कोई अन्य उपमान ही नहीं, अतः भारत (उपमेय) की तुलाना भी उपमान रूप भारत से ही कर दी गयी है।

12. भ्रांतिमान अलंकार –

जब सादृश्य के कारण उपमेय में उपमान का भ्रम हो, अर्थात् जब उपमेय को भूल से उपमान समझ लिया जाये, तब भ्रांतिमान अलंकार होता है।

उदाहरण

बेसर-मोती-दुति झलक परी अघर पर अनि।
पट पोंछति चुनो समुझि नारी निपट अयानि॥
यहाँ नायिका अधरों पर मोतियों की उज्ज्वल झलक को पान का चूना समझ लेती है और उसे पट से पोंछने को कोशिश करती है।

13. विशेषोक्ति अलंकार –

कारण के रहते हुए कार्य का ने होना विशेषोक्ति अलंकार है।

विशेषोक्ति का अर्थ हैं ‘विशेष उक्ति’। कारण कें रहने पर कार्य होता है किंतु कारण के रहने पर भी कार्य न होने में ही विशेष उक्ति हैं।

उदाहरण –

धनपति उहै जेहिक संसारू।
सबहिं देइ नित,घट न भेजरू॥
सदा सबको देना रूपी कारण होने पर भी भंडार का घटना रूपी कार्य नहीं होता।

14. विभावना अलंकार –

जब कारण के न होने पर भी कार्य होना वर्णित होने पर विभावना अलंकार होता हैं।

उदाहरण –

बिन घनश्याम धाम-धाम ब्रज-मंडल में,
ऊधो! नित बसति बहार बरसा की हैं।
वर्षा कार्य के लिए बादल कारण विद्यमान होना चाहिए। यहां कहा गया है कि श्याम घन के न होने पर भी वर्षा की बहार रहती हैं।

15. त्यतिरेक अलंकार –

व्यतिरेक में कारण का होना जरूरी है। अतः जहाँ उपमान की अपेक्षा अधिक गुण होने के कारण उपमेय का उत्कर्ष हो वहाँ पर व्यतिरेक होता हैं।

उदाहरण

का सरवरि तेहिं देउं मयंकू।
चांद कलंकी वह निकलंकू॥

मुख की समानता चन्द्रमा से कैसे ढूँ ?

16. अपहृति अलंकार –

जब उपमेय का निषिध करके उपमान का होना कहा जाये तक अपहृति अलंकार होता है।

उदाहरण –

नूतन पवन के मिस प्रकृति ने साँस ली जी खोल के।
यह नूतन पवन नहीं हैं, प्रकृति की साँस हैं।

17. अर्थान्तरन्यास अलंकार –

जब किसी सामान्य कथन से विशेष कथन का अथवा विशेष कथनसे सामान्य कथन का समर्थन किया जाय, तो ‘अर्थान्तरन्यास’ अलंकार होता है।

उदाहरण –

जाहि मिले सुख होत है, तिहि बिछुरे दुख होइ।
सूर-उदय फूलै कमल, ता बिनु सुकचै सोइ॥
पहले एक सामान्य बात कहीं कि जिस व्यक्ति के मिलने से सुख होता है उसके बिछड़ने से दुख होता है फिर एक विशेष बात कमल और सूर्य की कहकर इस सामान्य कथन का समर्थन किया कि जिस प्रकार सूर्य के आने से कमल को सुख होता है, पर उसके बिछुड़ जाने से कमल संकुचित हो जाता है।

18.उल्लेख अलंकार –

जब एक वस्तु का अनेक प्रकार उल्लेख अर्थात्‌ वर्णन किया जाय तब वहाँ उल्लेख अलंकार माना जायेगा।

उदाहरण –

कोउ कह नर-नारायन,हरि-हर कोउ।
कोउ कह, बिहरत बन मधु-मनसिज दोउ॥
यहाँ वन में विचरण करते हुए राम-लक्ष्मण का विभिन्न व्यक्तियों के विभिन्न दृष्टि कोणों से वर्णन हुआ है।

19. विरोधाभाष अलंकार –

विरोधाभास का शाब्दिक अर्थ ही ‘विरोध का आभास देने वाला’

वास्तविक विरोध न होते हुए भी जहां विरोध का आवास प्रतीत हो वहां विरोधाभास अलंकार होता है।

उदाहरण –

सुधि आये सुधि जाय।
सुधि आने में सुधि चल जाती हैं। यहां विरोध दिखाई पड़ता है पर विस्तुतः विरोध नहीं है क्योंकि वास्तविक अर्थ है सुधि(याद) आने पर सुधि चती जाती हैं।

20.असंगति अलंकार –

संगति तभी होती है जब कारण और कार्य एक ही स्थान पर घटित होते हैं किंतु असंगति में एक ही समय में कारण एक स्थान पर तथा कार्य अन्य स्थान पर घटित होता वर्णित किया जाता है।

अर्थात -जहां कारण एक ही स्थान पर तथा कार्य अन्य स्थान पर वर्णित किया जाए वहां असंगति अलंकार होता है।

उदाहरण –

तुमने पैरों में लगाई मेहंदी
मेरी आंखों में समाई मेहंदी।
मेहंदी लगाने का काम पाँव में हुआ है किंतु उसका परिणाम आंखों में दृष्टिगत हो रहा है इसीलिए यहां असंगति अलंकार है।

21. काव्यलिंग अलंकार –

किसी व्यक्ति से समर्थित की गई बातको काव्य लिंग अलंकार कहते हैं।

इसमें प्राय दो वाक्य होते हैं, एक में कोई बात कही जाती है दूसरे में उसके समर्थक हेतु का कथन होता है। पर दो वाक्य का होना आवश्यक नहीं।

उदाहरण

कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय।
वह खाये बौरात जग, यह पाये बौराई॥
यहां इसी बात का समर्थन किया गया है कि सुवर्ण धतूरे की अपेक्षा सौ गुनी अधिक मादकता है। इस कथन का समर्थक हेतु बताया गया है कि आदमी धतूरे के खाने से पागल होता है पर सोने को पाने से ही पागल हो जाता है।

22. अन्योक्ति अलंकार –

जहां अप्रस्तुत के वर्णन के द्वारा प्रस्तुत का बोध कराया जाए वहां अन्योक्ति अलंकार होता है।

अप्रस्तुत अर्थ वह होता है जो प्रसंग के विषय नहीं होता परंतु जो प्रस्तुत अर्थ के समान होता है।

उदाहरण –

काल कराल परै कितनो,पै मराल न ताकत तुच्छ तलैया।
यहां कवि किसी मनस्वी पुरुष का वर्णन करना चाहता है जो विपत्ति के कठिन से कठिन समय में भी क्षुद्रता का आश्रय ग्रहण नहीं करता। पर मनस्वी पुरुष का प्रत्यक्ष वर्णन न करके हंस के वर्णन द्वारा उस का बोध कराया गया है। यहां मनस्वी पुरुष का अर्थ प्रस्तुत है और इसका अर्थ है अप्रस्तुत है।

23. उदाहरण अलंकार –

जब एक बात कह कर उसके उदाहरण के रूप में दूसरी बात कही जाए और दोनों को ‘जैसे’ ‘ज्यों’ ‘जिमि’ आदि किसीभाववाचक शब्दसे जोड़ दिया जाए।

उदाहरण –

जो पावे अति उच्च पद, ताको पतन निदान।
जो तपि-तपि मध्याह्न लौं, असत होत है भान॥

24. स्वभावोक्ति अलंकार –

किसी वस्तु के संभाविक वर्णन को स्वभावोक्ति अलंकार कहते हैं।

उदाहरण –

भोजन करते चपल-चित, इत-उत अवसर पाई।
भाजि चले किलकात मुख, दधि-ओदन लपटाय॥
यहां राम आदि बालकों के बाल स्वभाव का सर्वथा स्वाभाविक वर्णन है।

25.अत्युक्ति अलंकार –

जब रोचकता लाने के लिए शूरता,उदारता,सुन्दरता,विरह प्रेम आदि का अद्भुततापूर्ण वर्णन किया जाए।
यह अलंकार प्रस्तुत अतिशयोक्ति का ही एक रूप है।

उदाहरण –

जाचक तेरे दान तें भये कल्पतरु भूप।
राजा से याद को अपने इतना दान पाया कि वे कल्पवृक्ष बन गए। यहाँ राजा के दान का अत्युक्ति वर्णन है।

26. निदर्शना अलंकार –

जहां वस्तुओं का पारस्परिक संबंध संभव अथवा असंभव होकर सादृशता का आधान करें, वहां निर्देशना अलंकार होता है।

उदाहरण –

कविता समुझाइबों मूर्ख को
सविता गहि भूमि पै डारिबो हैं।

यहां ‘मूर्ख को कविता समझने’ के कार्य को सूर्य को लेकर पृथ्वी पर फेंक देना कहा गया है,अर्थात दोनों को एक बताया गया है। वस्तुतः दोनों कार्य एक नहीं है,मूर्ख को कविता समझा सकना एक बात है,और सूर्य को पृथ्वी पर एक सपना बिल्कुल दूसरी,दोनों कार्य सर्वथा अलग है।फिर भी दोनों को एक बताया गया है,इसीलिए की दोनों में समानता सूचित करनी है -मूर्ख को कविता समझा सकना वैसे ही असंभव है जैसे सूर्य को पृथ्वी पर फेंक सकना।

27. परीसंख्या अलंकार –

जब किसी बात का कथन दूसरी बात या बातों का निषेध करने के लिए किया जाए।

परीसंख्या का अर्थ ही वर्जन है

उदाहरण –

तिथि ही को छय होत है रामचंद्र के राज।
तिथि का ही श्रय होता है,यह कथन करने का वास्तविक अभिप्राय यह बताने का है कि प्रजा में किसी व्यक्ति या किसी गुण का श्रय नहीं होता।

3. उभयालंकार की परिभाषा | ubhaya alankar ki paribhasha

उभयालंकार की परिभाषा – ऐसे अलंकार जो शब्द और अर्थ दोनों पर आधारित रह कर दोनों में परिवर्तन करते हैं, वहाँ पर उभयालंकार होता है ।

उभयालंकर के प्रकार

उभयालंकर के प्रकार
1. संसृष्टि अलंकार
2. संकर अलंकार

दोस्तो हमने इस आर्टिकल में Alankar in Hindi के साथ – साथ Alankar kise kahate hain, Alankar ki Paribhasha, Alankar ke bhed के बारे में पढ़ा। हमे उम्मीद है आपको यह जानकारी पसंद आई होगी। आपको यहां Hindi Grammar के सभी टॉपिक उपलब्ध करवाए गए। जिनको पढ़कर आप हिंदी में अच्छी पकड़ बना सकते है।

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